जो भक्तों के पापों का हरण कर लेते हैं,वही हरि-कृष्णप्रिया

हरिपथ:लोरमी-15 नवम्बर नगर में कई दिवस से जिंदल परिवार के निज निवास में कृष्णप्रिया की अमृतमयी वाणी में आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस की कथा का रसपान कराया गया। कथा शुरू से होने से पूर्व गणपति पूजन, नवग्रह पूजन व श्रीमद्भागवत पुराण का पूजन किया गया। कथा आयोजक जिंदल परिवार द्वारा कथा के प्रारम्भ में व्यासपीठ पर विराजित परम विदुषी कृष्णप्रिया एवं अन्य ब्राह्मणों का स्वागत किया।

“महारास” की दिव्य कथा का वर्णन करते हुए पूज्या कृष्णप्रिया जी ने कहा – सर्वेश्वर भगजोवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में अनेकानेक बाल लीलाएं कीं, जो वात्सल्य भाव के उपासकों के चित्त को अनायास ही आकर्षित करती हैं। जो भक्तों के पापों का हरण कर लेते हैं, वही हरि हैं। महारास शरीर नहीं अपितु आत्मा का विषय हैं। जब हम प्रभु को अपना सर्वस्व सौंप देते हैं तो जीवन में रास घटित होता है। महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया। लेकिन जब गोपियों की भांति भक्ति के प्रति अहंकार आ जाता है तो प्रभु ओझल हो जाते हैं। उसके पश्चात गोपियों ने एक गीत गया जिसे “गोपी गीत” कहा जाता है उसके माध्यम से उनके हृदय की पीड़ा को देखकर भगवान कृष्ण प्रकट हो गए और रास घटित हुआ। महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का का ही मिलन हुआ। जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते है। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।

कृष्णप्रिया बाल्यावस्था से ही भगवान के गुणों का वाचन कर रहीं हैं। उनका जन्म 26 जनवरी, 1997 को वृंदावन में हुआ था। मात्र 5 वर्ष की आयु में इन्होंने महा संत श्री रूपकिशोर दास से गुरुदीक्षा ली और भगवत नाम और गौ सेवा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज लाखो लोगो की प्रेरणा कृष्णप्रिया देशभर में 500 से अधिक कथाओं का वाचन कर चुकीं हैं साथ ही अपने प्रवचनों के माध्यम से युवाओं को मोटिवेट करतीं हैं।

कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना इत्यादि कथाओं का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। कलयुग में भागवत कथा साक्षात श्री हरि का स्वरूप है। इसे सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं परंतु मानव प्राणी को यह कथा सहज ही प्राप्त हो जाती है। मानव जीवन तभी धन्य होता है जब वह कथा स्मरण का लाभ प्राप्त कर लेता है। सत्संग एवं कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान की शरण में पहुंचता है वरना वह इस संसार में आकर मोह माया के चक्कर में पड़कर अपना मानव जीवन जो अश्वमेध यज्ञ के समान होता है उसको व्यर्थ में ही निकाल देता है।

उन्होंने बताया कि आजकल के लोग भगवान कृष्ण व उनकी लीलाओं को मानवी समझते हैं और बे फिजूल वाद विवाद करते हैं। वे अपनी मति के अनुसार ही भगवान की चीर हरण लीला, माखन चोरी लीला, गोवर्धन लीला, रासलीला इत्यादि लीलाओं का अर्थ समझते हैं लेकिन वे इन लीलाओं के पीछे छिपे गुण रहस्यों को समझने का प्रयास तक नहीं करते। भगवान की हर लीला के पीछे भक्तों का उद्धार और कोई विशेष संदेश छिपा होता है जिसे केवल भगवत कथा द्वारा व प्रेम द्वारा ही समझा जा सकता है।
आगे कहा कि भगवान के साथ सच्ची प्रीत से ही ज्ञान प्रकट होता है। दृष्टांत के माध्यम से समझाया कि भीलनी माई, धन्ना जाट, कर्मा बाई, नरसी भक्त जैसे अनेकों भक्तों ने किसी विद्यालय से विद्या प्राप्त नहीं की थी लेकिन उनकी प्रभु के साथ सच्ची प्रीति थी। इस प्रीति से ही उनके अंदर ज्ञान प्रकट हुया। वह सभी भक्त शिरोमणि बनकर विश्व में विख्यात हुए। श्रीमद्भागवत के मंगलाचरण में कहा ‘सत्यम परम धीमहि’ यानी सभी परम परम सत्य परमात्मा का सदा ध्यान करें।

इस दौरान आदि मधुर भजनों पर भक्तों ने नृत्य कर हाजरी लगाई।श्रीमद्भागवत कथा प्रसंगों में आगे “रुक्मणि-श्रीकृष्ण विवाह” प्रसंग का श्रवण पान कराया जिसमें अलौकिक झांकी के दर्शन का लाभ प्राप्त किया। आगे भगवान की आठ पटरानियों व सोलह हजार विवाह का कारण स्पष्ट करते हुए देवी जी ने प्रसंग बताया कि ” एक मायावी असुर कन्याओं, राजकुमारी, रानी इत्यादि जो भी उसे सुंदर लगती उनको लाकर कारागार में बंदी बना लेता था। जब कृष्ण ने उसका संहार किया और सभी स्त्रियों को उनके घर भेज दिया। परन्तु उनके परिवार वालो ने उन्हें स्वीकार नहीं किया जिससे वे बेबस स्त्रियां आत्महत्या के लिए जाने लगीं। तब भगवान कृष्ण ने उनसभी को अपनी धर्मपत्नी का अधिकार दिया और सम्मानपूर्वक द्वारिका ले आये।” इससे यह स्पस्ट होता है कि भगवान कृष्ण ने उनकी प्राणरक्षा हेतु उनसे विवाह किया।

सत्कर्म के विषय मे उन्होंने कहा– जिसके जीवन में अधिक पुण्य होते हैं उन्हें अच्छा परिवार, अच्छा घर, इत्यादि सुख मिल जाते हैं और स्वर्ग में भी सुख साधन प्राप्त होते हैं लेकिन वो सब भोग्य पदार्थ ही है और तुम वहाँ का सुख तभी तक भोग सकते हो जब तक तुम्हारे अकाउंट में सत्कर्म का धन है। लेकिन जैसे ही तुम्हारे सत्कर्म नष्ट हो जायेंगे तो तुम्हे वहां से धक्का मार दिया जायेगा। इसलिए जीवन मे सत्कर्म सदैव करते रहने चाहिए जिससे दुसरो के साथ साथ स्वयं का भी भला होता है और ईश्वर की कृपा भी प्राप्त होती है।
रिंकू अग्रवाल ने बताया कि 16 नवम्बर रविवार को शाम 3 बजे कथा भागवत श्रवण करने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शिरकत करेंगे।



