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भगवान के नाम का विश्वास हर मुश्किल से बचाता है-कृष्णप्रिया

हरिपथ:लोरमी-13 नवम्बर नगर में जिंदल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में वृंदावन की कृष्णप्रिया ने राजा रहूगण संवाद बताया गया। नाम की महिमा बताते हुए अजामिल चरित्र का वर्णन किया इस कलयुग में नाम ही सार है। जब आप भगवान का नाम लेते हैं तो साक्षात शब्द के रूप में भगवान ही आपके जिव्या पर आपके साथ होते हैं, इसलिए हमें हमेशा भगवान के नाम के आश्रय में रहना चाहिए , इस कलयुग में योग जप तप में कोई बल नहीं है,जितना बल भगवान ने कलयुग में नाम को दे रखा है, भगवान पर कितना विश्वास होना चाहिए यह भक्तराज प्रहलाद की कथा हमें बताती की किस प्रकार एक भक्त का पिता उस बालक को भगवान का नाम न लेने के लिये कितना प्रताड़ित करता है उन्हें मारने की कोशिश करता है।

लेकिन भगवान के नाम का विश्वास उन्हें हर मुश्किल से बचाता है,और एक दिन प्रभु का ही विश्वास जड़ पत्थर में से साक्षत नरसिंह भगवान को प्रकट कर कर देता है, सार बताते हुए कहा कि विश्वास से ही भगवान भावित होते हैं विश्वास से ही प्रभू को पाया जा सकता है, विश्वास से ही प्रभु की अनुभूति की जा सकती है, आपका विश्वास ही प्रभु के प्रति समर्पण भाव लेकर आता है और विश्वास ही प्रभु की अनुभूति प्रत्यक्ष करा देता है, गजेंद्र मोक्ष समुद्र मंथन सूर्यवंश चंद्रवंश की कथा का वर्णन करते हुए भगवान कृष्ण के जन्म का बड़ा सुंदर ही वर्णन सुनाया गया, भगवान अवतार क्यों लेते हैं यह बताते हुए कृष्णप्रिया ने कहा अवतार अवतर्निका शब्द के नाम से बना है, अवतर्निका अर्थ होता है।

सीढ़ियां कि वह परमात्मा जो हमारी पहुंच से दूर है जो योग शब्द यज्ञ तपश्चार्य आदि करने से भी वे मुश्किल प्राप्त होते हैं वही परमात्मा जब भक्तों के भाव से भावित हो जाते हैं दया से द्रवित हो जाते हैं ,तो फिर वह अवतार ले लेते हैं और हमारे एकदम इतने निकट आ जाते हैं कि उन्हें देख सकते हैं इस स्पर्श कर सकते हैं उनको अपनी तरह महसूस कर सकते हैं। यानी भगवान भगवता से भी आगे आकर के हमारे लिए इतने सरल बन जाते हैं और उस होने वाले घटित कार्य को हम अवतार का नाम लेते हैं। अवतार लीला में भगवान हम मनुष्यों की भांति सारे कार्य करते है, अपनी सारी लीलाएं हम मनुष्यों की तरह करते हैं ,लेकिन अवतार में और हमारे जन्म में में बड़ा फर्क है। हमारे जन्म में हमारा जन्म व मृत्यु और हमारे जीवन के कार्य हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होते हम जैसा जन्म चाहे वहां जन्म नहीं होता , बल्कि हमारे कर्मों के प्रभाव से ही हमारे कार्य परिस्थितियां और हमारे जन्म मृत्यु है। लेकिन भगवान के अवतार में भगवान का जन्म पहले से निश्चित होता है भगवान का को कब लीला का विश्राम करना यह भी निश्चित होता है और कब जीवन को किस तरह से शिक्षा देते हुए आगे बढ़ाना है वह भी पहले से ही उनकी इच्छा पर आधारित होता है तो भगवान कर्म के बंधन में नहीं है भगवान अपनी इच्छा से सब तीनों कार्य कर सकते हैं लेकिन मनुष्य यह तीनों कार्य करते हुए भी इच्छा से नहीं कर सकते बल्कि कर्म के कारण प्रारब्ध के कारण वे जन्म मृत्यु और जीवन जीते हैं।

ज्ञात हो कि चलें पूज्या कृष्ण प्रिया जी महज 7 वर्ष की आयु से श्रीमद् भागवत कथा राम कथा नानी बाई का मायरा अन्य पुराण कथाओं का वाचन कर रही है युवावस्था में ही भारत ही नही अपितु विदेशों की धरा पर भी जाकर सनातन धर्म को जन जन तक पहुंचा रही है,विदेशों की धरा पर भी लोगों के ह्रदय में सनातन धर्म की वैदिक परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। कृष्ण प्रिया आज

के परिवेश को देखते हुए अपने कथा में वैज्ञानिक ढंग से कथाओं का उदाहरण श्रोताओं को देती है ,क्योंकि इनकी कथाओं का उद्देश्य आज के युवाओं को भक्ति व सामाजिकता से जोड़ना है, अपनी कथाओं के साथ साथ समाज की कुरीतियों का भी मिटाने का बड़ा सुंदर ही प्रयास करती है| समाज में भेदभाव ऊंच-नीच व राष्ट्र संबंधी दहेज प्रथा कन्या भ्रूण हत्या बेटियों को समानता आदि ऐसी कुरूतियों को भी कथा के माध्यम से सही करने का प्रयास रत है.। कृष्ण प्रिया  नवंबर में कनाडा की धरती श्री कृष्ण कथा में गीता संबंधी प्रवचन विदेश कि धरा पर लोगों के जनमानस तक पहुंचऐगी।

इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री अरुण साव, कांग्रेस के प्रदेश सहप्रभारी विजय जांगिड़, कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव, पवन अग्रवाल, विष्णु अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, रिंकू अग्रवाल सहित बड़ी संख्या श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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