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भागवत कथा:भगवान की हर लीला के पीछे भक्तों का उद्धार-कृष्णप्रिया

हरिपथ:लोरमी-नगर में आयोजित श्री मद भागवत कथा में दुसरे दिन कृष्णप्रिया ने कहा कि अगर आप अपने मन मे हर समय ये विचार रखते हैं कि भगवान आपको ही देख रहे हैं तो आपका मन मलिन नहीं होगा और पाप भी नहीं होंगे। भगवान से केवल संसार को मांगने के लिए ही न याद करें अपितु उनसे उन्हें ही मांगे, उनकी भक्ति ही मांगे और जो कुछ आपको प्राप्त है उसके लिए उनका आभार भी व्यक्त करें। आप जैसे भी हैं अच्छे-बुरे, क्रोधी-लोभी, सकारात्मक-नकारात्मक सच्चे मन से प्रभु की शरण मे ग्रहण करें। ईश्वर अवश्य ही आप पर कृपा करेंगे।”

 उन्हेंने बताया कि आजकल के लोग भगवान कृष्ण व उनकी लीलाओं को मानवी समझते हैं और बे फिजूल वाद विवाद करते हैं। वे अपनी मति के अनुसार ही भगवान की चीर हरण लीला, माखन चोरी लीला, गोवर्धन लीला, रासलीला इत्यादि लीलाओं का अर्थ समझते हैं लेकिन वे इन लीलाओं के पीछे छिपे गुण रहस्यों को समझने का प्रयास तक नहीं करते। भगवान की हर लीला के पीछे भक्तों का उद्धार और कोई विशेष संदेश छिपा होता है जिसे केवल भगवत कथा द्वारा व प्रेम द्वारा ही समझा जा सकता है। इसलिए श्रीमद्भागवत कथा को सबसे श्रेष्ठ ग्रन्थ बताया गया है क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण का वास तो है ही साथ ही ये सभी मनोरथों को पूर्ण कर हमें भगवान के चरण कमलों तक पहुंचा देती हैं। जीवन के प्रत्येक समस्या का समाधान है “श्रीमद्भागवत कथा” जिसके श्रवण मात्र से समस्त पाप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं।

 कथा में देवी जी ने बताया कि – आज के कुछ मनुष्य ने अपनी स्थिति को बिगाड़ लिया है। जहां विदेशी हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं वहीं भारतीय लोग अपने धर्म से विमुख होते जा रहे हैं। आज हमारा खान-पान, रहन-सहन, बात-चीत सबकुछ पश्चिमी सभ्यता की ओर आरुण है। हमें ये  समझना होगा कि सूर्य भी पश्चिम में जाकर अस्त ही होता है तो हमारा जीवन भला कैसे सफल हो सकता है। सभी से निवेदन करते हुए दीदीजी ने कहा कि आप सभी हमारे धर्म व संस्कृति को जाने तथा उसका अनुसरण करें। वेद-शास्त्रों का अध्ययन करें, जीवो के प्रति दया भावना लाएं और स्वयं को ईश्वर की भक्ति में लगाएं। इससे आपका तो कल्याण होगा ही साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी नई राह मिलेगी।

पूजा और विग्रह दर्शन की विधि बताई और कहा- सर्वप्रथम भगवान के चरणों की ओर निहारते हुए गुरुमन्त्र का जाप करें। और धीरे धीरे सम्पूर्ण विग्रह के दर्शन कर उनके सुंदर स्वरूप को मन मे स्थापित करें । विग्रह पूजन से बड़ी ही सरलता से ईश्वर में ध्यान लगाया जा सकता है। जो लोग मूर्ति पूजा को नहीं मानते और ईश्वर को सर्वत्र मानते हैं तो वे यह भी समझें जब ईश्वर सभी जगह है तो विग्रह में भी है तो विग्रह पूजन में हर्ज कैसा? चंचल मन को निराकार ईश्वर में लगाना अत्यंत मुश्किल है इसलिए भक्ति की शुरआत विग्रह से करें जब तक आप इस अवस्था में न आ जाएं ही ईश्वर के दर्शन आपको सर्वत्र हों। भक्ति से हमें अपने अस्तित्व का भान होता है।

कथा के अनेकानेक ज्ञानवर्धक प्रसंगों के साथ ही देवी जी की मधुर वाणी में भजनों पर सभी भक्तजन झूमते नजर आए और पूरा  पांडाल कृष्णभक्ति एवं जयकरों से गूंज उठा।।इस अवसर पर पवन अग्रवाल,विष्णु  अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, रिंकू अग्रवाल सहित जिंदल परिवार एवं बड़ी श्रवण जन उपस्थित रहे।

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