भारत मे वृद्धाश्रम की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है ,जो कि चिंतनीय- देवी चित्रलेखा

हरिपथ – लोरमी – 19 सितंबर विख्यात कथा वाचिका देवी चित्रलेखा ने नगर में आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा में इन दिनों शहर में है। उन्होंने ने पत्रकार वार्ता में बताई कि 7वर्ष की उम्र से ही उन्होंने श्रीमद् भागवत कथा शुरु की । घर का अच्छा पारिवारिक माहौल मिला , गुरू जी बचपन से प्राप्त हो गए । इन सब चीजों को मिलाकर कथा की । भगवान की कृपा तब से चली आ रही है । भारत वर्ष एवम देश विदेशों सहित 350श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करा चुकी हैं ।

उन्होने आगे कहा की यह मेरा प्रोफेशन नहीं है , कैरियर नहीं है । बचपन से ही कथा की शुरूआत की हूं तो मुझे आगे का पता नहीं था। छत्तीसगढ में कथा की शुरूआत कहां कहां किए जाने के सवाल पर उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ में खरसिया, रायपुर में भागवत कथा हुई है । और भी कथा छत्तीसगढ़ में होते रहती है । छत्तीसगढ़ हमेशा आना जाना रहता है । छत्तीसगढ़ के लोग भक्ति माहौल में रहते हैं । महिला आरक्षण के सवाल पर उन्होने कहा कि महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए । शासन की तमाम योजनाओं का लाभ उन्हें उठाना चाहिए।

भारत में बढ़ रहे वृद्धाश्रम के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वृद्धाश्रम की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है जो कि चिंतनीय है । इसलिए लोगों को अधिक से अधिक संख्या में आध्यात्म में में जुड़ना चाहिए । घर का माहौल आध्यात्मिक होना चाहिए। घर घर में रामायण का पाठ होना चाहिए । बच्चा जो घर के माहौल में देखता है, वही सीखता है । और आगे उसी तरह उसका अनुसरण करता है। इस दौरान मीडिया समुह के पत्रकार उपस्थित रहें।
सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा जिंदल परिवार द्वारा आयोजित तृतीय दिवस देवी चित्रलेखाजी ने अपनी मधुर वाणी से श्रवण कराते हुए कहा कि जीव जन्म लेते ही माया में लिपट जाता है। और माया में लिपट जाने के कारण जीव अपने कल्याण के लिए कुछ नहीं कर पाता। वह जैसे जैसे कर्म करता जाता है वैसे वैसे फल उसे भोगने पड़ते हैं।

बताया के मृत्यु के बाद जीव को 28 नरकों में से अपने कर्म के अनुसार किसी को भोगना पड़ता है तामिस्, अंध्र तामृस्, शैरव, माहरोख, काल असि पत्रवन इत्यादि 28 प्रकार के नरक हैं।
अजामिल उपाख्यान की कथा, अजामिल जिसने जीवन भर पाप कर्म किये हर प्रकार से वह दुष्कर्मी था मगर घर आए संतों की एक बात मान कर अपने पुत्र का नाम उसने नारायण रख दिया।

जीवन के अंत समय में अपने पुत्र के प्रति मोह के कारण नारायण नारायण पुकारने के कारण ही उसे जो यमदूत लेने आये थे, वो उसे यमलोक न ले जा सके । वह गौलोक वासी हुआ। तात्पर्य ये है की जीव को भगवान् नाम के प्रति सच्ची आस्था रखनी चाहिए।फिर वह नाम चाहे आलस में ले या भाव से ले।

इसके बाद देवीजी ने गुरु और शिष्य के बंधन पर प्रकाश डाला कहा कि सच्चे गुरु और शिष्य के सम्बन्ध का उद्देश्य सिर्फ भगवद् प्राप्ति होती है, जो शिष्य अपने सद्गुरु की उंगली पकड़ कर भक्ति करता है निश्चित ही वह भगवान् को प्राप्त कर लेता है।इसके पश्चात श्री सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को सृष्टि प्रकरण का वर्णन श्रवण कराया कि कैसे कैसे इस सृष्टि की रचना हुई।

कथा विश्राम से पूर्व भगवान् के सबसे कम उम्र के भक्त श्री प्रह्लाद जी महाराज की कथा सुनाई। प्रह्लाद जी जो मात्र 5 वर्ष की उम्र में भगवान को पाने के लिए अकेले जंगल में चले गए। उन्हें स्वयं श्री नारद जी ने गुरु बन कर जाप मंत्र दिया। और इस मंत्र का जाप करते हुए जब भक्ति की सबसे ऊँची स्तिथि पर प्रह्लाद जी पहुच गए । तब स्वयं नारायण जी ने पधारकर प्रह्लाद जी को दर्शन दिए।साथ ही साथ हरिनाम नाम के जाप पर विशेष चर्चा करते हुए बताया की हरि नाम सर्वोपरि हैं, मनुष्य को हरिनाम नहीं भूलना चाहिए।
